मेरी कहानी - प्यार चाहिए सेक्स नहीं!


22 साल की शिखा को यह पता चल चुका था कि उसका जीवन और सेक्स को लेकर उसकी महत्त्वाकांक्षाये उसके दोस्तों से अलग हैं। आइये जाने कि अलैंगिक होते हुए भी कैसे ढूंढी उसने खुशियां…

शिखा मल्होत्रा (परिवर्तित नाम) 22 साल की है और दिल्ली में एम् बी ए की पढाई कर रही है।

हाँ मैं अलैंगिक हूँ

किशोरावस्था से ही शिखा अपनी लैंगिकता को लेकर स्पष्ट नहीं थी। उसकी सभी दोस्तों के बॉयफ्रेंड थे लेकिन उसके जीवन में उनका अभाव था। ना ही वो किसी लड़के के प्रति आकर्षित थी। ऐसा नहीं था कि उसे रूमानी रिश्ते पसंद नहीं थे। वो हमेशा से रोमांस में इच्छुक रही थी, बस उसके रोमांस से भरे सपनो में सेक्स नहीं होता था।
जब उसकी दोस्त लड़कों के प्रति उनके यौन आकर्षण के बारे में चटखारे लेकर बातें करती थी तो उसे समझ नहीं आता था कि इतना बवाल किस बात का है। उसे उन बातों में कोई मज़ा नहीं आता थाI उसके हमउम्र के लोग और दोस्त यह बोलकर उसे और परेशान कर देते थे कि यह हार्मोन्स की वजह से है और थोड़े समय में सब ठीक हो जायेगा।

प्यार की तलाश

कभी-कभी शिखा को लगता था कि कहीं वो लेस्बियन तो नहीं लेकिन वो भी सही नहीं था क्योंकि उसने कभी अपने आपको लडकियों की तरफ़ भी आकर्षित होता नहीं पाया था। तो शायद यही बात थी, लड़का हो या लड़की वो किसी भी लिंग की तरफ यौनिक रूप से आकर्षित नहीं थी। लेकिन फ़िर भी वो घर बसाना चाहती थी और उसे बच्चों और शादी में भी दिलचस्पी थी। उसे पता था कि यह मुमकिन नहीं होगा, क्योंकि इन सब के लिए तो सेक्स होना ज़रूरी है।
उसे पता था कि जब रिश्ते में सेक्स ना हो तो प्यार ढूंढना मुश्किल होता है। उसने दो-तीन लड़को को डेट भी किया लेकिन मामला अच्छी दोस्ती से आगे ना बढ़ सका। अब कौन लड़का बिना सेक्स के रोमांस करेगा।

सेक्स सेक्स सेक्स....क्या बवाल हैं

शिखा को समझ नहीं आ रहा था कि सेक्स के पीछे लोग इतने पागल क्यों है। उसे तो सेक्स अनावश्यक, घिनौना और डरावना लगता था। उसे तो कभी भी किसी के भी साथ सेक्स करने का मन नहीं किया था। एक दूसरे के हाथों और शरीर का स्पर्श ही उसके लिए बहुत था, चुम्बन करने की क्या ज़रुरत थी?

शिखा को कई बार कामोत्तेजना महसूस हुई थी और उसने हस्तमैथुन करके देखा था। यह उसके लिए एक बेहद सुखद एहसास था क्योंकि इससे उसे पता चला था कि यौनिक आनंद उठाने के लिए उसे सेक्स करने की ज़रुरत नहीं हैI।
समय के साथ-साथ शिखा को अपने आपको और अपनी अलैंगिकता को और बेहतर समझने लगी थी। उसे एहसास हो गया था कि यह कोई बीमारी नहीं जिसका इलाज किया जाए। वो समझ गयी थी कि सेक्स के अलावा भी ज़िंदगी है क्योंकि इसके बिना भी खुश रहा जा सकता है।

शादी का दबाव

अपने लैंगिक रुझान या यूँ कहे उसके अभाव के चलते शिखा का किसी भी पारिवारिक समारोह में जाना दूभर हो गया था। उसके रिश्तेदार हमेशा उसकी शादी की बात करते थे और उसे पता था कि अरेंज्ड मैरिज उसके और उसके होने वाली साथी की ज़िन्दगी बर्बाद कर देगी।

उसने फैसला कर लिया था कि वो किसी ऐसे पुरुष से ही शादी करेगी जिसकी उसकी तरह सेक्स में कोई रूचि नहीं हो। वो दोनों बच्चे गोद ले लेंगे और एक आदर्श और सुखी परिवार की तरह अपनी ज़िंदगी जी लेंगे।

अपने आप से खुश

अपनी लैंगिकता को स्वीकार करना और उसके साथ जीवन जीना शिखा के लिए आसान नहीं रहा था। उसके हमउम्र दोस्त कई बार उस पर सेक्स करने का दबाव डाल चुके थे। सेक्स ना करने की वजह से उसे भद्दे मजाकों का सामना भी करना पड़ चूका था। लोग उसे फूहड़ नामों से बुलाया करते थे। कुछ लोग कहते थे कि शिखा अपने शरीर से नाखुश है इसीलिए सेक्स से दूर रहती है। समय के साथ शिखा को समझ आ चुका था कि उसे हर किसी की बात का जवाब और स्पष्टीकरण देने की बिल्कुल ज़रुरत नहीं है और किसी को फ़र्क़ भी नहीं पड़ता कि उसके जीवन में क्या चल रहा है।
आज शिखा अपनी लैंगिकता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो चुकी है। उसे संगीत सुनना और यात्रा करना पसंद है और वो लेखिका बनना चाहती है। वो सोचती है कि ज़िन्दगी में हर एक व्यक्ति के लिए खुशियां मौजूद हैं बस पहले आपको आपने आप से खुश होना पड़ेगाI

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